Composed on Jun 14, 1991
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वह आज चुप बैठी रही
सुबह से - जब उसने दूध गर्म करने को चढाया
दूध गर्म हुआ, उफान आया, और फैल गया
वह न उठी ।
छोटा बच्चा उसके पास आया - वह भूखा था
वह न उठी ।
पति ने खाना माँगा
वह खड़ा रहा - कुछ देर - और फिर चला गया ।
बच्चा भूख से कुछ देर रोया - और फिर सो गया
सूरज धीरे धीरे आसमान में चढ़ा और ढल गया ।
पर वह यूं ही बैठी रही; चुपचाप ।
वह सोचती रही न जाने क्या
कहीँ मानो उलझ गयी ।
घर भी चुप है
दीवारें सहमी सी हैं ।
शाम हो गयी है ।
बच्चा जग गया है और माँ के पास बैठा है
पति लौट आया है
वह भी पास ही बैठा है ।
सब इंतज़ार में हैं
वह उठे और चूल्हा फिर जले
कि फिर घर बोल उठे ।