क्या खोजते हैं सन्यासी
नश्वर जगती की राहों पर ?
क्या उकेरते हैं शिल्पी
इन पत्थर चट्टानों पर ?
क्या माँगते मर्त्य मनुष्य
अमर देव स्थानों पर ?
काल के अटल प्रवाह में
हैं सभी क्षणिक प्रतिबिम्ब ।
प्रतिबिम्ब खोजते सत्य को
सत्य में मिल जाने को ।
अपना अंतःकरण उकेरते
नयनों को दिखलाने को ।
दया माँगते मर्त्य मनुष्य
पाषाणों को पिघलाने को ।
प्रतिबिम्बों को ही फिर खोजा करते
प्रतिबिम्बों के खो जाने पर !
नश्वर जगती की राहों पर ?
क्या उकेरते हैं शिल्पी
इन पत्थर चट्टानों पर ?
क्या माँगते मर्त्य मनुष्य
अमर देव स्थानों पर ?
काल के अटल प्रवाह में
हैं सभी क्षणिक प्रतिबिम्ब ।
प्रतिबिम्ब खोजते सत्य को
सत्य में मिल जाने को ।
अपना अंतःकरण उकेरते
नयनों को दिखलाने को ।
दया माँगते मर्त्य मनुष्य
पाषाणों को पिघलाने को ।
प्रतिबिम्बों को ही फिर खोजा करते
प्रतिबिम्बों के खो जाने पर !