Composed on Nov 07, 1992
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मुझे घने अँधेरे में डर लगता है
इसलिये नहीं कि
इस अँधेरे में मुझे कुछ दिखायी नहीं देता
बल्कि इसलिये कि इस अँधेरे में वे देख सकते हैं ।
मैं जानता हूँ कि
जैसे जैसे इस अँधेरे की उम्र खिंचती जायेगी
उनकी आंखें और अभ्यस्त होती जाएँगी
उनके निशाने और अचूक होते जायेंगे ।
तब तो उस फकीर की बात किसी ने नहीं मानी
उसने कहा था कि
सूरज डूब जाये - जो कि डूबेगा ही - तो
ज़रा भी शोक न करना ।
बस अपने घर के दीयों को
जतन से जलाए रखना
उन्हें बुझने मत देना
उन्हें अंधा बनाने को एक दिया भी काफी है ।
और अब तुम सब बैठ कर रो रहे हो
यह अँधेरा तो पहले ही इतना भयावह है
पर मुझे तो दुःख इस बात का है कि
मुझे भी उस फकीर की बात सही लगी थी ।
और मैंने सोचा भी था
दिया जलाने के लिए
इंतजाम करने को
पर न जाने क्यों मैंने कुछ नहीं किया ।