जनमत जनशक्ति साथ हो
राष्ट्रप्रेम की अनुभूति लिए तब
करते सेवा जन – जन की
तुम आना रण विजय घोष को ।
रोको उन बेगानों को जो नहीं मानते…
करते स्वागत द्रोही जन का वे
और बेचते नित राष्ट्र हमारा
स्वार्थ लोलुप बन बाज़ारों में ।
जनमत जनशक्ति साथ हो
भर हुंकार उठा पतित को
समरस समाज की रचना कर
तुम आना रण विजय घोष को ।
कितना लहू बहाया
कितना दुःख उठाया
उन देशभक्त दीवानों ने स्वातंत्र्य अग्नि में
निज को होम चढ़ाया ।
जनमत जनशक्ति साथ हो
उठा कदम निश्चय से भर
तुम निडर बढ़ जाना पथ पर
ओ भारत के रक्षक।
दहके थे वे शोला बन कर
उन पराधीन, काली रातों में
भेजे थे बच्चे माँओं ने
चढ़ने को भेंट, छुपा कर आँसू ।
जनमत जनशक्ति साथ हो
आगे बढ़ फिर थाम तिरंगा
तुम बनना ढाल जन-जन की
ओ नवयुग के सेनानी ।