Saturday, September 25, 2010

Kashmir

सवालों के घेरे में हैं रिश्ते
और हवाओं में खुशबू कम हो रही है
मेरे कश्मीर की मिट्टी न जाने क्यों लाल
और फिजाँ गमगीन हो रही है ।


जुड़ा है हिंदुस्तान का दिल इस कदर
ऐ मेरे कश्मीर तुझसे
कि अलगाव की बात सुन
आंखों से बरसात हो रही है ।


कश्मीर हमारा भी है
यह कहने में मुझको क्या झिझक ऐ दोस्त
कश्मीर तुम्हारा ही है
यह सुना तबसे जिंदगी खामोश सी हो गई है ।


सौ करोड़ से ऊपर हैं हम हिन्दुस्तानी
क्या लड़ें आपस में अब इस बात पर
कि श्रीनगर की पहचान अलग है... (?)
खुदा का नूर बाँट कर ये हो तो हो, नहीं, तो हरगिज़ नहीं ।


झेलम और डल झील बचपन से मेरी और तुम्हारी रही है
शिकारे अलग अलग हैं तो क्या हुआ
आज़ादी तुमको मुझसे कैसे मिलेगी मेरे दोस्त
जब गुलामी मैंने दी ही नहीं ।


अब न करो फिर से बात बाँटने की
हिन्दुस्तान गमगीन हो उठा है
कफन और नहीं बेचे जाते इन दुकानदारों से
दरगाह पर चादरें चढ़ाना ज्यादा अच्छा लगता है ।


साझी विरासत है हमारी
साथ चलना ही भला है
मस्जिदों में दुआ और मंदिरों में पूजा होती रहे
कश्मीर हमारा है - हर धड़कन पर दिले हिंदुस्तान  यही कहता है ।


Sep 25, 2010