Thursday, May 10, 2007

Mother

Composed on Apr 29, 1994
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माँ
दुनिया के इस कोने में
घर से बहुत दूर
मैं
अकेला हूँ
और
मुझे कुछ
कहना
है
जो
कोई नहीं सुनता।

थके हारे कदम लेकर
मैं
ढूंढता फिरता
थोड़ा सा सुकून
पर मुझे कहीँ भी
चैन नहीं आता
और मैं भटकता रहता
ले गीली आंखें।

तुम्हारे तवे की
वह गोल गोल रोटी
और वह डांट
याद आती है
हर रोज
और उठ जाता मैं
आधे पेट ही
देखता रहता
आसमान को।।



River

Composed on Jun 20, 1990
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जाओ छोड़ो भी
अब न सुनुँगा मैं कुछ भी
क्यों पिछली बारिश में तुमने
मेरी सीमाओं को तोड़ा था ...?

चंचल हो पर इसका यह मतलब तो नहीं
कि छोड़ दो तुम तटिनी कहलाना
मेघों को धरा से ही देखो
इस बार फिर भटक ना जाना।

ये बारिश है ही ऎसी
रोक न पाती मैं खुद को
जीवन का रस सुमधुर
हे तट मैं क्या करूं!

मैं नदी - प्यास बुझाती
पर फिर भी मैं जल की प्यासी
मत रूठो; लौट तो आती हूँ
इस बार दूर न जाऊंगी ॥

Love

Love does not stop. Love does not agree. It does not listen, it only says "I love you." And then it glows in the eyes and flows from the lips...let the love spread!