Sunday, June 10, 2007

Time

वक़्त तू क्यों इतना विरोधी है ?
करता है सांठ गाँठ हवा के हर झोंके से
कि बन थपेड़ा वह मुझे चोट पहुँचाये ।

जिन्दगी के हर मोड़ पर
तू मुझे कठिन राहें दिखाए
वक़्त तू क्यों इतना विरोधी है ?



August 08, 1993

Wait

वो काफिले सजाते रहे
और हम करते रहे इन्तजार
पर अफ़सोस - वक़्त को न थी किसी की परवाह
वो तो दूरियां और बढ़ा गया ।

March 05, 1993

O Destiny !

पथराई आँखें - शून्य तकतीं
मन में अबुझ प्यास
सूखे ओंठ
ये तेज हवाएं
लड़खड़ाते कदम
अनजान राहें
अनजान चेहरे
पराए से
नियति ! मैंने ऐसा क्या बिगाड़ा था ?
जो इस मोड़ पर ले आयी !



March 04, 1993