Thursday, May 10, 2007

Mother

Composed on Apr 29, 1994
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माँ
दुनिया के इस कोने में
घर से बहुत दूर
मैं
अकेला हूँ
और
मुझे कुछ
कहना
है
जो
कोई नहीं सुनता।

थके हारे कदम लेकर
मैं
ढूंढता फिरता
थोड़ा सा सुकून
पर मुझे कहीँ भी
चैन नहीं आता
और मैं भटकता रहता
ले गीली आंखें।

तुम्हारे तवे की
वह गोल गोल रोटी
और वह डांट
याद आती है
हर रोज
और उठ जाता मैं
आधे पेट ही
देखता रहता
आसमान को।।