Sunday, December 16, 2007

खोज

क्या खोजते हैं सन्यासी
नश्वर जगती की राहों पर ?

क्या उकेरते हैं शिल्पी
इन पत्थर चट्टानों पर ?

क्या माँगते मर्त्य मनुष्य
अमर देव स्थानों पर ?

काल के अटल प्रवाह में
हैं सभी क्षणिक प्रतिबिम्ब ।

प्रतिबिम्ब खोजते सत्य को
सत्य में मिल जाने को ।

अपना अंतःकरण उकेरते
नयनों को दिखलाने को ।

दया माँगते मर्त्य मनुष्य
पाषाणों को पिघलाने को ।

प्रतिबिम्बों को ही फिर खोजा करते
प्रतिबिम्बों के खो जाने पर !