Saturday, December 01, 2007

चलो संग

प्रतीक्षाओं के लंबे साए
और जीवन के चुनिंदा गहरे पल
यही मूल है कुछ भी कहो
अश्रु भरी अकेली आंखों का ।

तारागण मुस्काते हों
और सौंदर्य विस्मित बने रहो
सच के साथी कुछ पल छोटे...
ढूँढ सको तो चलो संग ।

एकाकी खडे रहो तुम चुप
अश्रु ह्रदय से हो कर निकलें
सोच रहे हो गत काल प्रवाह ?
विषपान नहीं और जीवन कथा !

दीपों से सजी मधुर वीथिका...
स्वप्नों की प्राचीरों पार करते वास
अनादि सुरों से अनजाने
जाते कहाँ वैरागी आज !