Saturday, December 01, 2007

मूरत के श्याम

श्रद्धा से नत मस्तक ले प्रभु द्वार तुम्हारे आया हूँ ।
पट खोल ह्रदय के तुमको अपने साथ ले जाने आया हूँ ।
वे कहते हैं कि . . . तुम ही तुम हो जग में ।
पर हे मूरत के श्याम, मैं तो तेरी यह छवि ले जाने आया हूँ ।